सौगात
बैठी अंधेरे कमरे,मै रोती रही...
शांत शर्वरी, टिक टिक की आवाज और मेरे सिसकते स्वर...
सुमध सामंजस्य सा समा सजने लगा...
इतनी गहरी समरसता की अपना सूध खोने लगी थी...
एकाएक अदृश्य से एक अदृश्य हाथ मेरी ओर बढ़ने लगा...
अवाक असल में उसे यूं ही निहारती रही...
करीब आकर मेरे भीतर से मुझे भाग, भागने लगी वो...
खौफजदा, खाली मै खामोशी से खुद को खोते देखती रही...
असंख्य प्रश्न जाग उठे थे मन में पर लब पर लफ्ज़ ना ला सकी...
हाथ थामे मैं उस हाथ के पीछे मैं उड़ चली...
अंधकार मार्ग, अनिश्चित मंजिल, अस्थिर मन...
अपरिचित संसार, अनदेखा साथ, अद्भुत सफर...
ठहरे ठोस ठिकाने, केवल काले कोहरे की कोख में...
जंजीरों में जकड़ना शुरू किया, अनंत शून्य के शोक में...
अत्यंत पीड़ा है इस जहां के स्पर्श में...
मानो लावा हो शिराओं में और ह्रदय चिर लहू की धारा बहे...
फेफड़े मेरे जल उठे आजाद हवाओं के अभाव में...
शरीर मेरा तड़प उठे खोए रूह कि रिक्तता से...
क्या याम, क्या यामिनी, क्या क्षुधा, क्या तृष्णा...
केवल एक बूंद अश्रु की याचना है, केवल एक क्षण सोहबत की हसरत...
एक सुकून सा है इस संताप में...
एक ललक है इस लौ में...
इस अग्नि की आदी हो चली अब मै...
म्रत्यु के मोह ने जैसे जिंदगी की जंग को एलाने व्यर्थ किया है...
बेडीयो में बंद कर, काली आंचल तले...
आंखें मूंद इस अंधकार के आधीन होने दो मुझे...
सीने में संपूर्ण समेट अनंत निद्रा का शाप दो मुझे...
शापित इस सपने अब समाधि की सौगात दो मुझे...
Thank you.
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